I am posting my story ‘Matore’ published in ‘Tehree-e-nav a prestigious Urdu monthly.
मेरे मित्रों के लिए मैं तहरीरे नौ में छपी मेरी कहानी मटोर को सरल हिन्दी में परिवर्तित कर के पोस्ट कर रहा हूं। आशा है मित्रों को कहानी पसन्द आएगी। कहानी आपको कैसी लगी, लिख भेजिएगा।
मटोर
गोबिन्द शर्मा
रावलपिंडी जिला के तहसील कहूटा मे बसा एक खूबसूरत गांव है मटोर। मटोर एक वादी है जो चारों तरफ़ आकर्षक सब्ज पहाडियों के मध्य स्थित है। मटोर में एक बड़ा सा बरसाती तालाब है बड्डा, जो गांव के पानी की सभी ज़रुरतों को पूरी करने का एक मात्र आधार है। बड्डे का पानी करामाती है। उसे पीने वाला हर व्यक्ति राजा बनता है. इसलिए मटोर वासी मटोर के राजे कहलाते हैं। कोई घर ऐसा नहीं जहां का कोई वासी अफ़सर न हो। आज़ादी से पहले अंग्रेजों की फ़ौज मटोरी हिन्दु और मुस्लमान अफ़सरों से भरी हुई थी। आज़ादी मिलने के बाद पाकिस्तान के कई शीर्ष नामी जनरल मटोर से हैं।
बड्डे का पानी पीने के काम आता है और कपड़े धोने के भी। तालाब के किनारे बड़े बड़े लम्बे पत्थर रखे हुए हैं, जहां औरतें कपड़ो को पीट पीट कर उनकी गंदगी दूर करती है और फिर उस गंदगी को तालाब के हवाले कर देती हैं।
गांव के जानवर भी बड्डे में घुटने घुटने खड़े हो कर पानी पीते हैं और फिर अपनी प्यास बुझाने के बाद तालाब में चैन से पसर कर जुगाली करते हैं, और ध्यान मुद्रा में मग्न होकर दुनिया भर के गंभीर मामलों पर संजीदगी से चिंतन करते हैं।
बड्डे को मैला करने की इतनी अनथक कोशिशों की वजह से तालाब का पानी मटमैला हो गया है। लेकिन हैरानी की बात है कि वो मटमैला पानी सेहत के लिए अत्यन्त हितकारी है। मटोरियों को कभी कोई पेट का रोग नहीं होता। दरअसल, मटोरियों की सेहत रावलपिंडी के किसी और गांव के रहने वालों से कहीं बेहतर है.
इस अजीबोग़रीब करिश्मे के पीछ एक ठोस वजह है। कहा जाता है कि सदियों पहले एक राजा ने बड्डे के तलुवे को तांबे की एक मोटी परत से ढकवा दिया था। वो तांबे की परत तालाब के filtration plant का काम करती है.
मटोरिए कौन हैं और कहां से आए, इसकी बड़ी दिलचस्प दास्तान है। दास्तान जानने के लिए हमें छह सौ साल पहले पंजाब के ज़िला गुजरात में जाना होगा.
बामन और काला खान जिला गुजरात के रहने वाले थे। दोनों बला के बहादुर और ताक़तवर थे। उनका तराशा हुआ जिस्म किसी युनानी देवता की तरह सुघड़, ढला हुआ दिखता था। पहलवानी के हर दंगल में वो दोनों ही बाक़ी पहलवानों को पछाड़ कर फ़ाईनल में पहुंच जाते थे।
फ़ाईनल मुक़ाबला गुजरात के हिन्दु और मुस्लमानों में हिन्दोस्तान और पाकिस्तान के क्रिकेट मेचों की तरह प्रतिष्ठा का मसला बन जाता था। बामन की तैयारी में हिन्दु अपना पूरा ज़ोर लगा देते धे तो मुस्लमान काला खान को तैयार करने में। दोनों फ़िरक़े के लोग अपने नामी पहलवान उस्तादों से काले खान और बामन को हर तरह के दांव पैंच सिखवाते।
मालिश करने वाले उनकी घंटों मालिश करके उनके जिस्म को लचकीला बनाते। सभी घरवाले अपने अपने घरों से पौष्टिक खाने, बादाम, दूध, मक्खन और घी उन के लिए लाते, ताकि बामन और काला खान उन्हें खाकर खूब ताक़तवर और मजबूत बनें। भगवान और अल्लाह से मदद की गुहार लगाई जाती। मंदिरों में बामन की कामयाबी के लिए प्रार्थना की जाती तो मस्जिदों में काला ख़ान के लिए दुआ।
कुश्ती के तारीख़ी दिन हिन्दु और मुस्लमान अपने सभी काम छोड़ कर अलग अलग जुलुस की शक्ल में घटना स्थल की तरफ़ झूमते गाते हुए निकल पड़ते थे। ढोल नगाड़े वाले पूरी ताक़त से ढोल नगाड़े बजाते। फूलों की मालाओं से लदे दोनों पहलवान जुलूस के आगे यूं शान से चलते जैसे कोई सिपहसालार अपनी फ़ौज की अगुवाई कर रहा हो। काले खान ज़िन्दाबाद और बाली बामन ज़िन्दाबाद के आकाश भेदी नारों से धरती कांप उठती।.
जिस मैदान में कुश्ती होती थी उसमें दोनों दल आमने सामने ताल ठोंक कर यूं बैठ जाते थे जैसे मैदाने जंग में दो फ़ौजी दस्तों की आमने सामने की सफ आराई। उस जंगी माहोल से प्रभावित होकर काले खान और बामन कुश्ती यूं मुस्तैदी से लड़ते थे जैसे कुश्ती उनके लिए ज़िन्दगी और मौत का सवाल हो।
चूंकि काले खान और बामन में न कोई उन्नीस था और न कोई बीस, इसलिए किसी साल जीत काले खान की होती और किसी साल बामन बाली की।
जीतने वाला धड़ा अपनी जीत को बड़े शान और जोश से मनाता। पहलवान के गले में नोटों का हार पहनाया जाता, उसे कंधों पर बिठा कर लोग गांव तक नाचते गाते लाते। बाद में पहलवान हर घर के बाहर रुकता, घर की मां बहनें बधाईआं गाते हुए उसका स्वागत करतीं और उसका सदका उतारतीं.
जीतने वाला फ़िरक़े में कई दिनों तक खुशी के प्रीतिभोज चलते। बकरे काट कर स्वादिषिट व्यंजन बनाये जाते। मालपुऐ, घन्दोड़े, शक्कर पारे और भी कई तरह की उमदा मिठाईओं बनतीं और वितरित होतीं। देर रात तक मौज मस्ती का आलम छाया रहता।
हारा हुआ फ़िरक़ा उसी वक्त से अगले साल की पूरज़ोर तैयारियां शुरु कर देता ताकि अगले साल हार का बदला लिया जा सके।
काला खान और बामन यूं ही हमैशा प्रतिद्वंदी बने रहते अगर उस यादगार रात का प्रसंग न घटा होता। वह रात गर्मी की एक तपती रात थी। लोग गर्मी से बचने के लिए अपने घरों के बाहर अपने आंगन में सोए हुए थे। काला खान के घर से आती चींखो पुकार की आवाज़ों से बामन जाग गया। तलवार हाथ में ले कर वह मामले को जानने के लिए काला खान के घर की तरफ़ बढ़ा। वहां जाकर उसने देखा कि अकेले काला खान पर सात आठ आदमियों ने हमला किया हुआ है।
काला खान बड़ी बहादुरी से अपना बचाव अपनी तलवार से कर रहा था। लेकिन कब तक। चाहे वह जवां मर्द कितना भी ताक़तवर था मगर देर सवेर हमलावर उस पर हावी हो ही जाते और वह मारा जाता।
यह लड़ाई बामन की लड़ाई नहीं थी और काला खान वैसे भी उसका कटर तल्ख़ प्रतिद्वंदी था। उसके मन में आया कि वह अपने घर वापिस लौट जाए। लेकिन अजीब बात यह हुई, कि वह काला खान की मदद के लिए खुद भी उन हमलावरों से भिड़ गया। दो ताक़तवर जिस्मों की जब ताक़तें आपस में एक साथ जुड़ीं तो वह हमलावरों पर भारी पड़ी। एक एक कर के सारे हमलावर मारे गए। लेकिन जैसे ही लड़ाई ख़त्म हुई ज्यादा ख़ून बह जाने की वजह से काले खां वहीं गश खा कर गिर पड़ा।
कई दिनों तक काले खान को होश नहीं आया। होश आने पर सब से पहले उसके मुंह से जो आवाज़ आई वह थी, “बामन कहां है.”
उस घटना के बाद काला खान और बामन की बाहमी कटुता उनकी गहरी और स्थायी दोस्ती में तबदील हो गई।.
उन्हीं दिनों कुछ ऐसी बात हो गई कि बामन को गुजरात छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। हुआ यूं कि बामन का भाई गुजरात राज्य का वज़ीर था। गुजरात का राजा किसी कारण गिरफ्तार करके दिल्ली ले जाया गया। राजा के ज्योतिषी ने रानी को बताया कि राजा एक महीने में रिहा हो कर वापिस गुजरात आ जायेगा। वैसा ही हुआ। रानी ने ख़ुश हो कर ज्योतिषी को कुछ मांगने को कहा तो ज्योतिष ने वज़ीर की सुन्दर बहन मांग ली। मोह्याल ब्राह्मण लड़ाकु कौम है। वह कर्म-कान्डी ब्राह्मणों को अपनी बेटी नहीं देते। वज़ीर ने बहन देने से इंकार कर दिया। बामन ने भाई से कहा कि रानी ज़बान दे चुकी है इसलिए रानी की आन रखने के लिए रिश्ता कर देना चाहिए। भाई और बाक़ी मोह्याल इस बात पर बामन से नाराज़ हो गए और उसे बिरादरी से ख़ारिज कर दिया। बिरादरी से ख़ारिज होने पर बामन का वहां रहना मुश्किल हो गया तो उसने वहां से कूच करने करने की ठान ली।
काला खान को जब बामन के कूच के बारे में जानकारी मिली तो वह गुस्से में तमतमाता उसके पास पहुंचा और उससे कहा, “सुना है कि तुम यहां से जा रहे हो।“
बामन ने जवाब में कहा, “हां।“
“क्या, मेरे बगैर, अपने दोस्त काला खान को अपने साथ लिए बग़ैर?
बामन चुप रहा।
“ओ बेशर्मा, शर्म नहीं आई तेनु। मेरे बग़ैर जाने की तूने सोची तो आख़िर सोची कैसे?”
“मैं नहीं जानता तक़दीर मुझे कहां ले जाएगी. मुझे बहुत दुश्वारियो का सामना करना पड़ सकता है“
“भाभी जान से भी तुम ने यह बात कही थी?”
“नहीं।“
“तो फिर बदब्खत काफ़िर ब्राह्मण, मुझसे क्यों कही। क्या मैं भाभी से कमज़ेर हूं। वह दुश्वारियां सह लेगी, मैं नहीं। दुश्वारियां सहना तो मामूली बात है, तेरी ख़ातिर तो मैं अपनी जान भी तुझ पर न्योछावर कर दूंगा मेरे यार।“
बामन और काला खान ने एक साथ गुजरात छोड़ा। कई जगह ठोकरें खाने के बाद दोनो दोस्तों को अन्त में मटोर ही बसने के लिए उपयुक्त लगा।
बामन शादी शुदा था, काला खान कुंवारा। अब बामन ने अपना यह फ़र्ज समझा कि वह काला खान के लिए लड़की ढूंढे और रिश्ते की बात चलाए। यह काम बहुत मुश्किल था क्योंकि उस ज़माने में लड़की वाले अकड़ कर लड़की देते थे। लड़की के घर का चक्कर काटते काटते लड़की मांगने वालों के जूते घिस जाते थे।
बहुत खोजबीन के बाद बामन को काला खान के लिए अच्छे खान्दान की एक उपयुक्त लड़की नज़र आई। लड़की वालों ने लड़की देने से साफ़ मना कर दिया। उन्होंने बामन से कहा कि कोई नहीं जानता कि काला खान कहां से आया है। न उसके बारे में पूरी जानकारी है न उसके ख़ान्दान के बारे में। अपनी लाड़ली बेटी को ऐसे व्यक्ति के वह हवाले कैसे कर दें।
वामन ने इंकार को स्वीकार नहीं किया। बामन ने लड़की वालों के घर की परिक्रमा करनी शुरु कर दी। लड़की वालों ने उसे बार बार ठुकराया, अपमानित किया लेकिन वह नहीं माना। लड़की वालों ने उसकी ढिठाई से तंग आकर एक दिन उसके गले में गऊ की आंतें डाल दी कि ब्राह्मण है, गऊ को पवित्र मानता है, गऊ की आंत गले में डाल दी हैं, अब वह दोबारा नहीं आएगा, जान छूटी। अल्लाह अल्लाह खैर सल्ला।
उन नादानों को पता नहीं था कि बामन अपनी दोस्ती की ख़ातिर हर क़ुर्बानी करने के लिए तैयार था। गले में आतें पड़ने पर उसके दिल को गहरी चोट पहुंची लेकिन उसने अपने दर्द को छुपाते हुए लड़की के बाप अख्तर से सवाल किया।
“जनाब अख़्तर साहेब, जो कुछ आपने किया इस के मायने आप जानते हैं?”
“हां, मैं जानता हूं और उमीद करता हूं कि किसी नादान और बेगैरत इंसान को भी इसका मतलब समझ में पूरी तरह आ जाएगा।“
“अख़्तर साहब, तो फिर आपकी समझ में क्यों नहीं आया?”
अख़्तर गुस्से में चिल्लाया, “क्या बक रहे हो?”
“जनाब, आंतें बड़ी मजबूत होती हैं, इसी लिए हल और गाड़ी के जुए आंत के ही बनते हैं। आपने हमारे साथ अभी अभी जो आंतों का रिश्ता जोड़ा है वह इतना मजबूत है कि अब आप चाह कर भी इसे नहीं तोड़ सकते। आप को अब अपनी बेटी की शादी मेरे दोस्त काला खान से करनी ही होगी। हील हुज्जत छोड़िए, जल्दी से हां कर दीजिए।“
अख़्तर ने अपने अब्बा की तरफ़ देखा. अब्बा ने जवाब देते हुए कहा, “अख़्तर, बामन खरी गल कर रहेया है. हुण कुड़ी देने पयेगी। गले ला ले ऐहनूं।“
अख़्तर ने एक गहरी सांस ली और कहा, “हुण ऐही करना पैसी क्योंकि लगता है रब की यही मर्जी है। आ बामन गले लगिए। आज से हम तुम रिश्तेदार।“
बामन ने अपने दोस्त काला खान का निकाह बड़े धूमधाम से किया। वलीमा में मटोर और आस पास के हज़ारों लोगों को न्योता दिया। वलीमें में लगता था जैसे कोई बहुत भारी मेला लगा हो। लोग वलीमा की दावत के बाद कहते सुने गए कि उन की यादाश्त में उन्होंने इतना शानदार जश्न न पहले कभी देखा न कभी सुना।
काला खान को बाद में पता चला कि बामन ने अपनी बीवी के जेवर बेच कर वह शानदार इन्तजाम किया था। गुस्से में तमतमाता हुआ वह बामन के पास पहुंचा और चिल्लाता हुआ बोला,
“ओ बेहय्या बामन, मेरे निकाह में भाभी के सारे जेवर बेच दिए। तुझे इतनी भी समझ नहीं आयी कि जेवर औरतों को उनकी जान से भी ज़्यादा प्यारे होते हैं।“
बामन ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, बस मुस्कुरा भर दिया। जवाब बामन की बीवी ने दिया, “देवर जी, आप मेरे पति के दोस्त हैं, इसलिए आप मेरे लिए सारी दुनिया के जेवरात से बढ़ कर हैं। आप इन्हें बुरा भला न कहिए, मेरे जेवर बेचने को तो मैने ही इनसे कहा था। आप अपना दिल छोटा न करें। मुझे मेरी भाभी के रुप में सारे जहां की दौलत मिल गई हैं।“
काला ख़ान फफक कर रो दिया।
काला खान बाद में मटोर की तहसील कहूटा का राजा बना। उसने अपना वज़ीर बामन को बनाया।
काला खान और बामन मरने के बाद भी एक दूसरे से जुदा न हुए। आज भी वह एक दूसरे के पास ही सोए हुए हैं। बामन अपनी समाधी में और काला खान अपनी क़बर में।
मटोर की आने वाला नसलों ने इन दो दोस्तों की इस बेमिसाल दोस्ती को क़ायम ऱखा। वहां के हिन्दु और मुसलमान में ग़ज़ब का भाईचारा था। न आपस में कोई रंजिश न कभी कोई फ़साद। मज़हब की दीवार कभी उन्हें एक दूसरे से अलग नहीं कर पाई। यक़ीन न हो तो विकिपीडीया में मटोर गांव के बारे में पढ़ कर देख लें।
पाकिस्तान बनने के बाद के उन स्याह दिनों में भी मटोर में आपसी मोहब्बत और शांति क़ायम रही। मुस्लमानों ने अपनी जान ख़तरे में डाल कर भी अपने हिन्दु भाईओं को बचाए रखा। किसी पर ज़रा भी आंच नहीं आने दी। काला खान और बामन की दोस्ती का जज्बा उन के मरने के छह सौ साल बाद भी आजतक मटोरियों ने जिन्दा रखा।
I.N.A. के जनरल शाहनवाज खान काला खान के वंशज हैं, और इस कहानी का लेखक बामन का। अदाकार शाहरुख खान ने अपने एक मुलाक़ात में कहा है कि शाहनवाज़ खान उन के नाना थे। www.tahreerenav.com
Hello Govind Sharmaji, mail me at narbhutan@gmail.com, Nar in BHUTAN
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